चकिया(मीडिया टाइम्स)। तहसील क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय चकिया में दूर व्यवस्था का यह आलम है कि खराब गुणवत्ता के भोजन एवं चिकित्सा सुविधा न मिलने के कारण अब अभिभावक अपनी बच्चियों को विद्यालय से वापस ले जाने लगे हैं।चकिया विकासखंड के मुजफ्फरपुर बस्ती की रहने वाली कक्षा 6 की मीनू की मां ने बताया कि कुछ समय पहले मेरी बेटी का हाथ विद्यालय परिसर में ही टूट गया था। वह दर्द से छटपटा रही थी लेकिन विद्यालय में मौजूद शिक्षिकाओं सहित वहां के अकाउंटेंट दिनेश मौर्य ने मेरी बेटी को विद्यालय परिसर में ही छटपटाने दिया किसी ने भी मेरी बेटी को अस्पताल पहुंचाने की जहमत नहीं उठाई। वही गांव के ही एक व्यक्ति द्वारा सूचना मिलने पर जब मैं विद्यालय पहुंची और घटना के बाबत शिक्षकों से सवाल पूछे तो शिक्षिकाओं ने मुझे जातिसूचक भद्दी-भद्दी गालियां दी और लड़ाई करने लगी और यहां तक कि मारने पीटने की धमकियां भी देने लगी। अंततः थक हारकर मैं अपनी बेटी को वहां से खुद निकालकर इलाज के लिए चकिया सामुदायिक अस्पताल के नजदीक एक निजी अस्पताल में ले गए और खुद इलाज करवाई और अंततः मेरे परिवार ने निर्णय लिया कि मेरी बेटी अब उस विद्यालय में नहीं पड़ेगी।
वही सूत्रों की माने तो एक दूसरा मामला चकिया विकासखंड के नरहरपुर के बबलू राम का है उन्होंने बताया कि उनकी बेटी सोनम कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय चकिया में पढ़ती थी गले में तकलीफ के कारण उनकी बेटी की तबीयत खराब हो गई और वह विद्यालय परिसर में ही बेहोश हो गई लेकिन उस समय की मौजूदा वार्डेन के अलावा कोई भी शिक्षक या कर्मचारी उस बच्ची की मदद के लिए आगे नहीं आया यहां तक कि घबराहट के कारण उस समय की मौजूदा वार्डेन की तबीयत खराब हो गई और बच्ची के साथ साथ अस्पताल में उन्हें भी इलाज के लिए भर्ती कराया गया। बच्ची की नाजुक हालत देखकर अंततः परिवार एक माह तक इलाज कराता रहा फिर बच्ची को पुनः विद्यालय ना भेजने का फैसला लिया। अभिभावक ने बताया कि यह दोनों मामले डीसी अमिता श्रीवास्तव के संज्ञान में थे लेकिन कार्यवाही के नाम को तो छोड़िए उन्होंने इस घटना के बाबत स्पष्टीकरण तक मांगना उचित नहीं समझा।
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