वाराणसी। जिले के चौबेपुर थाना क्षेत्र के हढियाडीह देवलपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा श्रवण कराते वाराणसी से पधारे व्यास आचार्य प्रिंसधर मिश्रा जी महाराज ने शिव पार्वती विवाह और शुकदेव जन्म की रोचक कथा का वर्णन किया। आयोजित भागवत कथा को श्रवण करने के लिए आसपास के सैकड़ों भक्तों ने लाभ उठाया। ये कथा रोजाना 3 बजे से 6 बजे तक हो रही है।
आज दूसरे दिन की कथा मे वाराणसी से पधारे श्री महाराज ने भक्तों को बताया कि जब हिमांचलराज की पुत्री पार्वती बड़ी होने लगती हैं तो उन्होंने यह प्रण लिया की हम शिव को ही अपने पति के रूप में प्राप्त करेंगी। तथा इस विवाह को कराने में देवता भी शिव को मनाते हैं कि वह पार्वती से विवाह कर लें लेकिन शिव इसके लिए तैयार नहीं हुए। माता पार्वती शिव को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या करती हैं। तथा उनके कठिन तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और विवाह के लिए तैयार हो जाते हैं। इस विवाह में देवताओं के साथ भगवान शिव अपने गणों जैसे भूत,पिशाचों को लेकर तन में भस्म लगाए बारात लेकर हिमांचलराज के यहां पहुंचते हैं। माता मैना शिव को दूल्हे का भेष देखकर डर जाती हैं और पार्वती का विवाह करने से मना कर देती हैं। तभी नारद जी ने उन्हें समझाया कि शिव कोई साधरण नहीं हैं, वह तो देवों के देव हैं। तब मैना ने भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्रमा और जटाओं में गंगा को देखती है। तब मां पार्वती और भगवान शिव का विवाह होता है और देवता पुष्पों की वर्षा करते हैं। अगले प्रसंग में नारद भगवान ने माता पार्वती से भगवान शिव के गले में पड़े नरमुंड माल के विषय मे पुछा कि ये माला किसका है।
माता पार्वती जी के पुछने पर भगवान शिव ने बताया कि ये माला किसी और का नहीं बल्कि तुम्हारी ही है माता ने शिव से पूछा कि ये क्या रहस्य है तो शिव ने बताया कि मैं अमर कथा श्रवण किया हूं जिससे मेरी मृत्यु नहीं होती। माता अमर कथा श्रवण सुनाने के लिए भगवान से प्रार्थना किया तब भगवान शिव ने माता पार्वती को अमर कथा सुनाया। भगवान ने माता पार्वती से ये शर्त रखी कि आप को कथा सुनने के दौरान बीच बीच में हुंकारी भरनी पड़ेगी। वहीं कथा श्रवण करने के दौरान माता को नींद आ जाती है और उनकी जगह एक तोता हुंकारी भरने लगता है। बीच में जब माता की नींद खुलती हैं तो हुंकारी भरने वाले का रहस्य खुलता है। तब शिव ने उस हुंकारी भरने वाले शुक को मारने के लिए त्रशूल छोड़ दिया। वह शुक तीनों लोकों में भागता हुआ व्यास जी के आश्रम पहुंचा और जम्हाई लेते हुए उनकी पत्नी के मुख से गर्भाशय में पहुंच गया। इस दौरान वह बारह वर्ष तक उनके गर्भ में रहे और ब्यास जी के कहने से की अब ये त्रिषूल तुम्हारा कुछ बिगाड़ सकता क्योंकि तुम अमर कथा श्रवण कर चुके हो। ब्यास जी के आश्वासन के बाद शुकदेव जी बाहर आये।
कथा श्रवण करने के लिए मुख्य रूप से बनारसी सिंह,बेचन सिंह, शिवमूरत सिंह, रामसूरत सिंह प्रेम शंकर सिंह के अलावा अन्य क्षेत्र के लोग मौजूद रहे।
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