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Monday, September 18, 2023

आधुनिक भारत के महान समाज सुधारक पेरियार ई वी रामास्वामी, भक्ति नहीं तो कोई हानि नहीं, यदि चरित्र ना हो तो सब कुछ खो जाता है - पेरियार ई वी रामास्वामी

पेरियार का अर्थ ही है "सम्मानित व्यक्ति"


भारत विभिन्न संस्कृतियों वाला देश है। यहां पर अनेकों धर्मों एवं संप्रदायों के लोग निवास करते हैं। यहां पर अनेकों समाज सुधारक, व राजनेता पैदा हुए। जिन्होंने समाज को नई दिशा दिया। ऐसे ही थे दक्षिण भारत में पैदा हुए पेरियार ई वी रामास्वामी जो कि 20सदी के महान राजनेता और दलितों के महान नेतृत्वकर्ता थे। गरीबों, मजलूमों के उत्थान के लिए वे सदैव कार्य करते रहे। उन्होंने जाति और हिंदू धर्म के गैर मानसिकता वाले विचार का विरोध किया और वे दलित समाज के समुचित उत्थान के लिए व्यक्तिगत रूप में सामाजिक कार्य करते रहे। पेरियार को इरोड वेंकट रामासामी के नाम से जाना जाता है। अपने पिता जी के पिटाई से छुद्ध होकर वे काशी चले गए। वहां जानें पर उन्होंने देखा कि वहां ब्राह्मण भोज चल रहा था। जिसमें ब्राह्मण लोग ही दिख रहे थे। यह देखकर वे काफी  विचलित हुए,  गैर बराबरी वाले हिंदुत्व का खूब विरोध उन्होंने किया। हिंदू महाकाव्य और पुराणों में कही बातों के वे बहुत ही प्रबल विरोधी थे। वह किसी भी बात को तर्क के कसौटी पर कसकर बात करतें थे। विधवा विवाह, बाल विवाह, देवदासी प्रथा के विरोध के साथ दलितों के प्रति शोषण के प्रबल विरोधी थे। मनु द्वारा बनाए गए वर्ण व्यवस्था का उन्होंने बहिष्कार किया।

वर्तमान समय में देखा जाए तो उस समय की तुलना में आज बहुत कुछ बदला है। डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर के लिखित संविधान के बदौलत और पेरियार रामास्वामी के संघर्ष के बदौलत यह परिवर्तन हुआ । स्त्रियों और दलितों ने शिक्षा ग्रहण करके अपने यथास्थिति को परिवर्तनशील बनाया है। विधवा विवाह, बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं न के बराबर देखने को मिल रही है, जो की महान क्रांतिकारी नेता पेरियार की देन मान सकते हैं।


 

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के आग्रह पर पेरियार ने 1919 में कांग्रेस पार्टी के सदस्यता ग्रहण की। और तमिलनाडु के प्रमुख भी बने। उन्होंने कांग्रेस के निवेदन पर वाईकॉम आंदोलन में भी भाग लिया और सड़कों पर दलितों के चलने पर मना करने और मंदिरों में प्रवेश पर रोक का उन्होंने खूब विरोध किया। उनकी पत्नी ने भी उनके मनोभावों को समझा व उनके आंदोलन को समझा और संघर्ष किया। उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली। पेरियार कांग्रेसी नेताओं के समक्ष पिछड़ों, पीड़ितों व दलितों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव रखा, जिसको न मानने पर उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता छोड़ दिया। दलितों के समर्थन में 1925में  एक आंदोलन भी चलाया। बाद में वे जस्टिस पार्टी की सदस्यता भी लिए। वे 1944 में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड कड़गम रख दिया। तमाम राजनीतिक, सामाजिक लड़ाइयों के बाद वे डीएमके पार्टी के मुखिया कह गए। पेरियार रामास्वामी को एशिया का सुकरात भी कहा जाता था। उनके ओजस्वी ज्ञान व विचारों से उन्हें तर्कवादी माना जाता था। उन्होंने हिंदू ब्राह्मण ग्रंथों का प्रबल विरोध किया और उनकी प्रतियां भी जलाई। वे रावण को अपना नायक भी मानते थे। तमिलनाडु में उन्होंने हिंदी भाषा का प्रबल विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि हिंदी लागू होने पर तमिल संस्कृति नष्ट हो जायेगी। 


 

पेरियार कहते थे कि हर आदमी समान है। किसी का शोषण नहीं होना चाहिए। हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए किसी को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। उन्होंने देश के वंचितों दलित व द्रविनो के उत्थान का तरीका बहुत ही कड़ाई से सिखाया। वे कहते थे की शिक्षा स्वाभिमान और तर्कसंगत गुड़ ही दलितों का उत्थान करेंगे भक्ति नहीं तो कोई हानि नहीं, यदि चरित्र ना हो तो सब कुछ खो जाता है।

उनके अन्य विचार इस प्रकार है - "कोई भी विरोध जो तर्कवाद या विज्ञान या अनुभव पर आधारित नहीं है एक न एक दिन धोखाधड़ी स्वार्थ झूठ और साजिशों को उजागर करेगा"

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पेरियार रामास्वामी सामाजिक राजनेता के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने भारतीय समाज को नई दिशा दिया।


(नोट -लेख संबंधी विचार लेखक का स्वयं है, सुझाव का स्वागत है!)


ईमेल: mkaushal210@gmail.com

मनोज कौशल

स्वतंत्र लेखक, पत्रकार

सलया, चंदौली (यू०पी०)

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